Than lo to sab sambhav hai

Jai ma Laxmi ji ki......
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Aadarniye sar dr.ujjawal patni ji ko Mera namskar & ap sabhi ko dhanyabaad.
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Aadarniye dr.Bheemrav ambedkarji ko koti-koti Naman. ..... ..... ..... 
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Mera un sabhi jiv-jantuo ko Naman jinhone Bina matbal ke hi hum sab ko sixha di....
Cheeti, Sher, kauaa, murga, kutta, gadha.
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Hum sab Bharat ma ki santan hone par garv karte hai lekin aaj bhi hmare Bharat me kahi-na-kahi Betiyo ke pankho ko kata ja raha hai or bah udan bharne me asmarth njar aa rahi hai. Aaiye is kahani ke madhyam se dekhe ak beti sapne dekh sakti hai pura karne ke liye sahas bhi rakhati hai lekin kis tarah ak aat-bisvaas se bhari Hui ke sapno ko kaise kuchala jata hai Bharat ma ki aesi Betiyo ke liye hum sabke support ki kitni jarurat hai to Kya hum sab Bharat ma ki is beti k sapno ko poora karne ki jra si sahayta bhi nahi Kar sakte.    ............................
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Kahani......

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 Bhagbaan ne hum sabko insaan ka janm dete waqt to koi bandishe nahi lagai na hi mrp. Ki koi chit chipkai agr chipkai hoti to kabhi bhi koi aam insaam kamyabi ke shikhar par na pahuchata, na hi amiri-garibi, jat-pat, ucha-neech ka koi dhabba lagaya,
Fir
Q
Ak garib ke sapno ko roka jata hai 
Q
Ak
Beti ke paro ko kata jata hai 
Koi hausala nahi de sakta girana chahta hai.
Aaiye ak aesi beti se milte hai Jo sapne ko poora karne ki jid liye Dil me aag lgaye baithi hai Duniya ki bheed me gum ho Jana pasand nahi insaan ka janm Mila hai to kuch karna chahti hai jina chahti hai sapno ko poora karke garv se kahna chahti hai hum sab Bharat ma ki santan hai khul Kar sans Lena chahti hai.

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Is kahani me koi milabat nahi na hi yha-bha se li gai is kahani ka har ak sawd sachchai ki gahrai se bhara hua hai. ....
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 एक समय की बात है मध्य प्रदेश की 1 तहसील में  मीरा नाम की लड़की रहती थी बचपन से ही मीरा को कई कामों में इंटरेस्ट रहता था स्कूल में चल रहे हर प्रोग्राम मैं भाग लेती दौड़, कुर्सी दौड़, धीमी साइकिल दौड़, पढ़ाई के मामले में  मीरा के आगे कोई  और टॉप कर ही नहीं सकता , क्लास और स्कूल में टॉप करने का हर साल सर्टिफिकेट भी मिलता  मीरा sc मैं आती थी इसलिए मीरा का हर कार्य में टॉप करना ज्यादा किसी को पसंद नहीं आता लेकिन मीरा बचपन में जात पात का भेदभाव नहीं जान पाती एक दिन स्कूल में वार्षिक उत्सव मनाया जा रहा था तब वह भी उस समारोह में भाग लेना चाहती थी लेकिन उस स्कूल की प्रिंसिपल ऊंची जात से आती थी उसके प्रदर्शन करने के बाद नाम तो लिख लिया जाता  लेकिन समारोह में चल रहे प्रोग्राम मैं उसका नाम नहीं बुलवाया जाता ऐसा मीरा कई बार देखती थी हर बार मीरा चाहती थी उसे एक मंच मिले लेकिन मीरा कभी सफल ना हो पाई क्लास और स्कूल में टॉप करने का सर्टिफिकेट भी मंच पर बुलाकर नहीं दिलवाया जाता क्लास में दे दिया जाता , वार्षिक उत्सव में शहर और जिला के कई बड़े-बड़े अधिकारियों को बुलाया जाता इस प्रोग्राम में कलेक्टर जी भी शामिल हुए और मीरा इन कलेक्टर जी को बड़ी सी गाड़ी में आता हुआ देखकर बहुत ही खुश हो उठती है उसके मन में तभी से कुछ करने की इच्छा जाग उठती है उसे बत्ती की गाड़ी में बैठना काफी पसंद आता कलेक्टर का नाम तो जैसे उसके दिमाग में बैठ गया अब सिर्फ और सिर्फ मीरा बड़े होकर कलेक्टर बनने के सपने देखने लगी ऐसा भी नहीं की मीरा मेहनत ना कर पाती क्योंकि मीरा के इरादे बुलंदियों को छूने की चाह रखते थे और मीरा मेहनत के मामले में कभी पीछे नहीं हटती, मीरा ने जब कलेक्टर बनने के सपने देख रखें थे तब मीरा करीबन कक्षा पांचवी में पढ़ रही थी इस वक्त राजपूतों को भारी सम्मान मिलता था यह सब मीरा क्लास में पढ़ रही sc को छोड़कर बाकी    लड़कियों को क्लास टीचर या प्रिंसिपल द्वारा दिए गए प्रोत्साहन को देखती थी, मीरा हर कार्य में बचपन से ही काफी इंटेलिजेंट देखी जा रही थी चित्रकला के मामले में तो जैसे फोटो ही छाप दिया हो मीरा की इस कला को देखकर एक दिन उसकी कक्षा की शर्मा मैडम जी पूछ लेती हैं बेटा तुम बड़े होकर क्या बनना चाहोगी मीरा मैडम जी मैं तो कोई बड़ी अधिकारी बनूंगी इस समय मीरा सातवीं क्लास में पढ़ रही थी कक्षा छठवीं से मीरा को दूसरे अध्यापक मिल चुके थे शर्मा मैडम को मीरा का हर कार्य में हुनर काफी पसंद आता था शर्मा मैडम जी मीरा को हमेशा ही प्रोत्साहित करती शर्मा मैडम जी पूरे स्टाफ में मीरा की तारीफ करती मीरा के पिताजी की भी काफी तारीफ होती कितनी अच्छी शिक्षा दी है मास्टर जी ने मास्टर जी की मीरा से बड़ी बेटी को भी शर्मा मैडम ने पढ़ाया हुआ था मास्टर जी की बड़ी बेटी रेणु भी पढ़ाई में काफी इंटेलिजेंट थी जिसे शर्मा मैडम जी  ने ही पढ़ाया हुआ था सारा स्टाफ मास्टर जी की और मास्टर जी की बेटियों की काफी तारीफ करते कक्षा सातवीं मैं साथ में पढ़ रही उसी की जाति की एक लड़की का एक प्रतिशत बढ़ गया तब उस लड़की के पापा ने मीरा के अंदर काफी नकारात्मक सोच भर दी कह देखा इस बार फिर मेरी बेटी से पीछे रह गई तुम कुछ नहीं कर पाओगी क्यों पढ़ाई कर रही हो चूल्हा फूको, कक्षा आठवीं से मीरा बिल्कुल बदल चुकी थी कक्षा आठवीं में मीरा के मार्क्स काफी कम हो गए इस वक्त मीरा का पास होना ही मुश्किल हो गया थर्ड डिवीजन आई शर्मा मैडम जी को बहुत दुख हुआ मैडम जी ने मीरा को मार्कशीट देते वक्त एकांत में ले जाकर पूछा क्या हो गया बेटा तुम्हें ,तुम तो बचपन से ही टॉपर थी लेकिन मीरा इस बात का कोई जवाब ना दे पाई मीरा को भी काफी हैरानी हो रही थी लेकिन मीरा खुद भी नहीं समझ पा रही थी कि क्या हो गया अब तो जैसे मीरा का वक्त ही बुरा आ गया था अब से मीरा पढ़ाई में जीरो हो चुकी थी कक्षा नवी मुश्किल से पास कर पाई अब मीरा मैथ में जीरो हो चुकी थी एक दिन था जब मीरा को 100 में से 90 -95 तक नंबर मिल जाते थे और इस वक्त नवी कक्षा से मीरा को मैथ्स का एक भी सवाल ना बनता तिमाही -छह माही मैं तो मीरा मैथ्स में जीरो लेकर आने लगी वार्षिक परीक्षा में भी मीरा को मैथ्स में सप्लीमेंट्री आ गई अब मीरा जैसी होनहार बेटी जिसने कलेक्टर बनने के सपने बचपन से ही देख रखे थे अब मीरा के सपनों पर पानी फिरता नजर आ रहा था मेहनत में मीरा कभी पीछे नहीं हटती । कक्षा दसवीं में मीरा सेकंड डिवीजन से पास हो गई लेकिन अब सवाल उठा विषय लेने पर मीरा को बचपन से ही मैथ्स काफी पसंद थी इसलिए उसने हार ना मानकर मैथ्स विषय ही चुना इस वक्त मीरा मैथ्स में जीरो हो चुकी थी लेकिन मीरा को विश्वास था मैं कुछ भी करके फर्स्ट डिवीजन लेकर आऊंगी अब मीरा पिछली पढ़ाई हुई टीचर शर्मा मैडम जी से मिलना चाहती थी मैडम जी से कहना चाहती थी मैं इतनी कमजोर कैसे हो गई लेकिन इस वक्त उसकी पसंदीदा शर्मा मैडम जी इस दुनिया से अलविदा कह चुकी थी इस बात का मीरा पर काफी बुरा असर पड़ा, अब मीरा कक्षा दसवीं में किसी न किसी तरह पढ़ लिख कर पास हो जाती लेकिन मीरा पढ़ाई में बिल्कुल कमजोर हो चुकी थी यह कमजोरी की वजह किसी को पता नहीं चल पाई लेकिन (एक दिन आ गया 30 साल बाद जब मीरा को अपनी सारी कमजोरियों की वजह पता चल गई बचपन से मीरा के माइंड में कई घटनाओं का समावेश हो गया था)

बचपन से मीरा के अंदर जात पात के भेदभाव को लेकर काफी बुरी तरह से घटना पनप चुकी थी लेकिन इस बात से मीरा हार नहीं रही थी उसे आत्मविश्वास था कि वह एक ना एक दिन कोई बड़ी अधिकारी बनकर दिखाएगी छोटी जात से ऊंचा उठकर ही दिखाएगी जिस दिन मैं उच्चतम शिखर पर पहुंच जाऊंगी उस दिन मेरे जैसी  sc मैं आने वाली कई लड़का /लड़कियों का साहस बनूंगी कलेक्टर बनने का सपना मीरा ने खुद के लिए नहीं देखा था बस वह सबकी मदद करना चाहती थी क्योंकि मीरा की बचपन से एक ही आदत थी सब के बारे में सोचने की छोटे में जब मीरा स्कूल जाया करती रोज मीरा मम्मी से या पापा से 1 या ₹2 ले जाती लंच बॉक्स भी रोज ले जाती कभी-कभी मीरा मम्मी पापा से 5 -5 रुपए ले लेती  उन पैसों में से मीरा 50 पैसे से खुद के लिए चने लेती बाकी बचे हुए पैसों से स्कूल के बाहर हर दिन एक बूढ़ी मां आकर बैठी रहती थी जिनका कोई नहीं था स्वयं ही ऐसा बोलती मीरा को बूढ़ी मां से काफी लगाव था और मीरा अपने पैसों में से कुछ पैसे बचा कर बिस्किट का पैकेट बूढ़ी मां को दे देती बूढ़ी मां रोज बोलती बेटा तुम बड़ी होकर ऊंचाई पर जाओगी ।
परिवार में मीरा की छोटी बड़ी बहने रहती हैं भाई नहीं रहता हर बेटी के लिए माता -पिता भाई और बेस्ट फ्रेंड दोनों का किरदार बखूबी निभा रहे मीरा के परिवार में सारी बहनें हर कार्य में काफी इंटेलिजेंट रही लेकिन मीरा की इच्छाएं और शौक इन सब से कुछ हटके देखे गए मीरा को मिडल क्लास फैमिली में होने के बाद भी राजा महाराजाओं जैसे रहने की लाइफस्टाइल पसंद थी खास बात मीरा हर जरूरतमंद की सहायता करने में काफी दिलचस्पी रखती जिस वजह से उसे खुद को कुछ साबित करने का सबसे पहला काम था।

कक्षा ग्यारहवीं में मीरा जब पढ़ रही थी तब उसके क्लास टीचर सोनी सर रहे सोनी सर हमेशा ही मीरा से गुस्से में पेश आते जैसे सोनी सर मीरा को क्लास में देखना ही पसंद नहीं करते इसके पीछे दो कारण रहे एक तो वह छोटी जात से थी दूसरा मैथ्स में कमजोर लेकिन सोनी सर मीरा के आत्मविश्वास को जरा भी झांककर नहीं देख पा रहे थे उन्हें तो जैसे चिड़चिड़ी भर्ती मीरा को अपने क्लास रूम में देखकर मन ही मन मीरा सोचती रहती क्या बिगाड़ा है मैंने इन सर जी का क्यों सर मुझसे चिड़चिड़ी दिखाते हैं हमेशा ही सर मीरा को नीचा दिखाते पूरी क्लास में हर दिन मजाक उड़ाया करते कहते कैसे-कैसे लोगों को मैथ्स जैसा विषय दे दिया जाता है उसकी तरफ देख कर हर दिन बड़ी जात की कई बेटियों को प्रोत्साहन देते समझाते रहते बेटा क्लास में कई कमजोर हैं उन्हें इग्नोर करना तिमाही की परीक्षा चल रही थी कुछ दिनों के अंदर रिजल्ट भी खुल गया इस वक्त मीरा काफी उत्साहित थी क्योंकि जितनी लड़कियों के नाम बोले जा रहे थे उन सबके नंबर 5 से लेकर 10 तक के बीच के ही आ रहे थे एक तरफ चिंतित मीरा दूसरी तरफ खुश हो रही थी उसे लगा मेरे मार्क्स पास जितने होंगे क्योंकि उसने मेहनत करके सवाल किए हुए थे मीरा उत्साह के साथ अपने नाम का इंतजार कर रही थी लेकिन सर ने मीरा की कॉपी सबसे पीछे रखी थी क्योंकि सबसे लास्ट में जी भर कर क्लास में मजाक उड़ा सके, जब उसका नाम नहीं बुला तब मीरा ने बोल दिया सर जी मेरे कितने मार्क्स आए हैं पास तो हो गई ना मैं सर जोर जोर से हंसते हुए सबको कॉपी दिखाने लगे क्योंकि सर ने कुछ चालाकी करके उसे 100 में से टोटल एक नंबर दे रखा था लेकिन वह अचंभित रह गई और ऊंची ऊंची जात वालों के आगे ना बोल पाई अब क्या था मीरा को सबने हंसी का पात्र बना लिया लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं थी दूसरे दिन सोनी सर प्रिंसिपल को क्लास में लेकर आते हैं और बोलते हैं देखिए इस मीरा को 100 में से एक नंबर लाई है और तो और पूरे स्टाफ को सोनी सर ने मीरा के खिलाफ भड़का दिया अब क्या था फिजिक्स के सर, केमिस्ट्री की मैडम , हिंदी इंग्लिश सभी विषय के टीचर मीरा से चिड़चिड़ा बर्ताव करने लगे लेकिन केमिस्ट्री की मैडम रश्मि भदोरिया जी मीरा के चेहरे पर आत्मविश्वास और साहस से भरी झलक देख रही थी एक दिन रश्मि मैम मीरा को घर पर पढ़ाने का बोल देती हैं काफी सपोर्ट भी करती हैं। मीरा को मैथ्स में चिंतित देखते हुए उसके पिताजी समझ जाते हैं और वह जाकर मीरा के सोनी सर से मिलते हैं मीरा के पिता जी अपने जैसा हर इंसान को समझते हैं उन्हें लगता है हर इंसान इंसान हैं इंसानियत तो होगी ही और अपना ही समझ कर सोनी सर से बोल देते हैं अपनी ही बेटी है मैथ्स को लेकर चिंतित रहती है बचपन से तो मैथ्स में और बाकी सभी विषयों में काफी होनहार रही सर्टिफिकेट भी मिलते रहे लेकिन अब कमजोर है अपनी ही बेटी है ध्यान देना इस बात के बाद मीरा के पिता जी चिंता मुक्त हो जाते हैं उन्हें लगता है सर से बोल दिया है तो सोनी सर मीरा की पढ़ाई पर ध्यान देंगे लेकिन यहां परिस्थितियां विपरीत हो जाती हैं क्योंकि वही सोनी सर मीरा से एकदम चिड़चिड़ा रहते थे कोचिंग पर तो आने का मौका दे देते हैं लेकिन बाकी लड़कियों की अपेक्षा₹50 ज्यादा लेते हैं बहाना बड़ा खूब बना देते तुम कोचिंग आने में काफी लेट हो गई हो कोर्स को कवर करने में मेरी दोबारा मेहनत लगेगी फिर मीरा कोचिंग जाने लगती है यहां भी सर मीरा का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते और मीरा के पापा द्वारा कही गई बात सब लड़कियों के सामने कह कर बड़ा ही मजाक उड़ाते कहते ऐसे बोल रहे थे इसके पिता जी जैसे सिर्फ इन्हीं की लड़की हो तुम सब किसी की लड़की ही नहीं हो, सोनी सर सिर्फ ऊंची ऊंची जात वाली लड़कियों को ही पढ़ाते लेकिन मीरा के पिताजी के कहने पर ज्यादा पैसे लेकर उसे कोचिंग आने के लिए हां बोल दिया लेकिन कोचिंग में मीरा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता सवाल उन्हीं राजपूतों की लड़कियों के रजिस्टर पर समझाते अगर रजिस्टर से उसे सवाल उतारने को रजिस्टर ना मिले तो किसी का रजिस्टर ना दिला कर उल्टा मीरा को ही बोलने लगते समझा तो दिया उतारने की क्या जरूरत है तुम्हें क्या समझ में नहीं आया और बाकी लड़कियों से पूछने लगते हैं तुम सबको समझ में आ गया ना और वह सब लड़कियां हां कह देती हैं इस तरह मीरा को कोचिंग में समझाएं गए सवाल कभी अपने रजिस्टर में उतारने के लिए नहीं मिलते यह सब देख कर एक दिन मीरा कोचिंग छोड़ देती है बचपन से ही मीरा बहुत कुछ घटनाओं को देखती आ रही थी लेकिन कभी किसी भी घटना के बारे में अपने माता पिता या किसी और से सांझा नहीं किया बस अपने में ही घुटती रही , अब वार्षिक परीक्षा नजदीक आ जाती है और मीरा पास होने की खुद से ही पूरी तैयारी कर लेती है फिर भी मीरा को पास होने का डर रहता है क्योंकि यह मीरा जो बचपन से मैथ्स में 95-98 तक नंबर ले आती थी अब वह जीरो पर पहुंच गई थी पास होने के लिए भी अब मीरा के पिताजी को डर रहता और अब मीरा के पिता जी ने अपनी बेटी को चिंतित देखते हुए फैसला कर लिया था की उसका सब्जेक्ट बदलवा दूंगा। कक्षा ग्यारहवीं की कापियां उस तहसील की हाई स्कूल में चेक होने पहुंच गई मीरा की कॉपियां चेक होने जिन सर के हाथों में गई वह तो जैसे मीरा के लिए भगवान के रूप में आए यह सर कोई मामूली नहीं थे उस तहसील की सबसे फेमस चौबे कोचिंग जहां पढ़ने वाले बच्चों की मार्क्स 95-98% तक आते कोचिंग से कोई भी स्टूडेंट कभी निराश नहीं होता जिसे पास होने तक की उम्मीद ना हो वह 75% किसी भी हाल में ले आता क्योंकि सर जी के पढ़ाने का तरीका सबसे अलग और बहुत ही आसान तरीके से समझाने का होता। 
सर जी मीरा के पिता जी मिल चुके थे कॉपियां चेक करते वक्त और चौबे सर जी को मीरा के पिताजी का नेचर बहुत ही अच्छा लगा मीरा के पिता जी मीरा के विषय बदलवाने की चर्चा सर जी से करते हैं अब यहां सर जी विषय बदलने की बात पूछ लेते हैं मीरा के पिता जी बता देते हैं मैथ्स में बहुत कमजोर हो गई है सर जी मीरा का रोल नंबर लेकर उसकी कॉपियों पर नजर करते हैं और उन्हें मीरा की लिखावट में कोई कमी नजर नहीं आती मीरा बचपन से ही होनहार रही उसमें हर चीज को लेकर काफी रुझान रहता और हर जगह अपनी अलग ही छाप छोड़ती यही आदत उसकी कॉपियों में लिखने की रही भले ही वह सही नहीं लिख रही लेकिन उसमें लिखने का तरीका बहुत ही अलग था जो सब नहीं देख पाते थे लेकिन कोचिंग वाले सर जी ने मीरा की कॉपियों को देखते ही मीरा के आत्मविश्वास और साहस को परख लिया अब कोचिंग के सर जी मीरा के पिताजी से मीरा के विषय को बदलने से मना कर देते हैं बोल देते हैं मीरा को आर्ट मत दिलाओ मैथ्स में मीरा अच्छी है पता नहीं क्या देख लेते है सर जी को मीरा की कॉपियों में क्योंकि इस वक्त मीरा को जरा भी विश्वास नहीं था पास होने का और वह पास हो जाती है अब कक्षा 11 वीं पास होकर  12वीं मैं आ जाती है मीरा के विषय ना बदलने का कारण पिताजी को समझ नहीं आता अब कोचिंग वाले सर जी मीरा के पिता जी से बोल देते हैं सर आप मीरा के विषय को लेकर टेंशन मत लो मेरी कोचिंग में मीरा को भेज देना सर मैं मीरा को फ्री में कोचिंग पढ़ाना चाहता हूं सर मैं मीरा की फीस नहीं लूंगा बस आप मीरा को मई से कोचिंग भेजना और यह बात फ्री में पढ़ाने वाली किसी को मत बोलना सर को मीरा पर विश्वास रहता है ।
मीरा को पहली बार एक ऐसे गुरु मिले जिन्होंने उसकी काबिलियत को समझने की कोशिश की अर्थात मीरा के जीवन में यह सर भगवान के रूप में गुरु बनके आए। 
 कोचिंग मैं पढ़ने के बाद मीरा किसी ना किसी तरह 12वीं सेकंड डिवीजन से पास कर लेती है।
अब मीरा पीछे मुड़कर नहीं देखती ना ही विषय बदलने का सोचती मैथ्स साइंस से ही मीरा आगे पढ़ती चली जाती है और फर्स्ट डिवीजन से बीएससी पास कर लेती लेकिन इन 3 सालों के बीच में मीरा को काफी उतार-चढ़ाव करना पड़ता है मीरा के साथ कई तरह की विपरीत परिस्थितियां चल रही होती हैं लेकिन मीरा हार नहीं मानती बीएससी का रिजल्ट खुलते ही 12 अगस्त को मीरा का बीएससी का रिजल्ट खुला और 14 अगस्त से मीरा की जॉब अतिथि शिक्षक में लग जाती है घर से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी के बीच गांव में यहां मीरा को बहुत अच्छा स्टाफ मिलता है वह काफी खुश रहती है लेकिन बचपन से मीरा को एक घटना खाए जा रही थी जिसे वह भुला ही नहीं पाती, अब मीरा इस घटना के चलते कई घटनाओं में उलझी चली जा रही थी उसे पता नहीं चल रहा था इस सब का कारण क्या है बचपन से मीरा को कोई ऐसा नहीं मिलता जिसे वह अपने सारे मन की बातें बता सके मीरा मां लक्ष्मी जी को बचपन से ही बहुत पसंद करती थी इसीलिए जब भी मीरा को कोई भी परेशानी होती वह मां लक्ष्मी जी की मूर्ति लेकर छत के कोने में जाकर बैठ जाती बचपन से उसकी यही आदत हमेशा रही और फिर लक्ष्मी मां को सारी बातें विस्तार से बताती और रोती उसे ऐसा लगता जैसी मां लक्ष्मी उसकी सारी बातें सुनती हूं क्योंकि मां को सुनाने के बाद उसको राहत महसूस होती कई बार तो मां को गलत भी बोल देती,अगर मीरा यही बातें अपने माता पिता को बताती तो शायद मीरा को 30 साल जिंदगी मौत से नहीं लड़ना पड़ता लेकिन मीरा अपने मन की सारी बातें किसी को भी नहीं बता पाती जैसे हर किसी से डरती हो हमेशा चिड़ी चिड़ी ,गुस्सा में, एकांत में रहना, किसी से ज्यादा बात ना करना, घर से ज्यादा बाहर ना निकलना जैसे खुद को कमरे की चारदीवारी में कैद करके रखती , हर किसी से लड़ती झगड़ती रहती हमेशा गुमसुम सी रहती थी।
 यह मीरा बचपन से एक बहुत ही चंचल होशियार बहुत अच्छी लड़की रहती है, लेकिन छठी क्लास से मीरा की मानसिकता पर कई घटनाओं का समावेश हो जाता है ।इस वजह से मीरा का पूरा जीवन इतर -बितर हो जाता है।
अतिथि शिक्षक में पढ़ाने के बाद मीरा गवर्नमेंट जॉब की तैयारी में जुट जाती है 1 साल कुछ काम करने का नहीं सोचती तैयारी अच्छी खासी कर लेती है लेकिन किस्मत साथ नहीं देती एएनएम का जब मीरा पेपर देने जाती है तब मीरा फोटो वाली आईडी नहीं ले जाती भूल जाती है और इस तरह उसे पेपर देने नहीं मिल पाता इस बात से दुखी हो जाती है। अब मीरा उसी तहसील में फिर से अतिथि शिक्षक की नौकरी पा लेती है यहां मीरा पूरा मन लगाकर काम कर रही थी और जब चेकिंग के लिए सर लोगों की टीम आती है तब अधिकारियों जी को मीरा के पढ़ाने का काम बहुत अच्छा लगता है स्कूल के प्रिंसिपल बर्मा शहर से सभी अधिकारी मीरा के पढ़ाने की काफी तारीफ करके जाते हैं कहते हैं बेटी मेहनत कर रही है क्योंकि बच्चों ने मैथ्स के सारे प्रश्नों के उत्तर अच्छे से दिए हुए थे।
अब मीरा का पढ़ाने में इंटरेस्ट बढ़ने लगता है लेकिन यहां भी मीरा को विपरीत परिस्थिति परेशान कर देती उस स्कूल के प्रिंसिपल वर्मा सर जो गुरु की कुर्सी पर बैठे हुए थे वह मीरा पर गंदी नजर रखते जब यह मीरा कई बार देख लेती तो वह 26 जनवरी के 4 दिन पहले 22 जनवरी को स्कूल छोड़ कर चली जाती और फिर इस तरह मीरा अतिथि शिक्षक की नौकरी छोड़ देती घर जाकर मीरा मां लक्ष्मी जी को सारी बातें बता कर बहुत रोती कई दिन रोती रही और सोचती कैसा समाज है यहां बेटियां खुलकर सांस ही नहीं ले सकती सपने पूरे करना तो दूर की बात है लेकिन यहीं से मीरा ठान लेती है वह कुछ ना कुछ तो भारत की बेटियों के लिए मरनउपरांत शिक्षा देकर ही जाएगी ताकि बेटियों पर हो रहे अत्याचारों को बेटियां जान सके और ऐसी घटनाओं से बच सकें गलत पर सवाल उठाने के लिए बेटियां तैयार रहे।

अब तो जैसे मीरा के ऊपर दुखों के पहाड़ ही टूट पड़े, दो-तीन साल बाद मीरा की शादी हो जाती है वैसे तो मीरा की शादी 1 जिले में होती है ,बहुत अच्छे परिवार मैं मीरा की शादी होती है मीरा के ससुराल वाले बहुत ही अच्छे रहते हैं।  परेशान कर देती हैं पुरखों से चली आ रही रूढ़ीवादी परंपराएं जिन्हें मीरा पर थोपा जाता है मीरा लिमिट के अंदर सहन कर लेती लेकिन जिस माहौल में मीरा जाती है वहां का माहौल ,इस 1 किलोमीटर मैं बसे मोहल्ले की बात निराली थी । यहां के लोग घर में जैसे बहू की जगह कठपुतली ले आए. मीरा को शादी के समय एक ऐसी पेटी पोत-पात के दी जाती है जो पुरखों से खानदान में चली आ रही थी इस लोहे की पेटी को देख क मीरा अचंभित हो उठती है उसे लगता है आज का समय तो पहिए वाले बैग का चल रहा है, यह मेरे साथ क्या हो गया शादी की रस्मो के चलते जब मीरा की नजर उस पर भी पड़ जाती है तब मीरा की आंखों में जैसे सन्नाटा छा जाता है मीरा तो कुछ ना बोल किसी से दीवार से टिक्कर बैठ गई अब तो जैसे मीरा को सदमा लग गया 2 घंटे मीरा की आंखों से आंसुओं की बौछार होती रहे लेकिन रोने की आवाज जरा सी भी नहीं आई मीरा लाख सोचने के बाद भी कुछ नहीं कर सकती क्योंकि यहां कुछ बोलने से माता पिता की इज्जत का सवाल रहता इसलिए खामोश रहकर सदमे में जाकर मीरा खुद को संभाल लेती फिर उसकी मां के लाख समझाने के बाद  उस जगह से उठी, शादी के चलते मीरा को चढ़ाई गई लोहे की पेटी देख कर सभी  दंग रह गए रिश्तेदार मम्मी पापा उसकी बहनों की आंखों से तो जैसे खून के आंसू निकल रहे हो क्योंकि मीरा की सारी बहनें जानती थी मीरा के बचपन से रहन-सहन का ढंग उसकी पसंद का ढंग उसे डेली यूज़ में भी क्वालिटी की चीज चाहिए। बचपन से ही अधिकारी बनने का सपना देखने वाली मीरा की शादी मैं माता पिता ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी लेकिन एक चूक घटना के तौर पर हो गई जो किसी भी बेटी के माता पिता जानबूझकर नहीं कर सकते लेकिन ससुराल पक्ष ने मीरा के साथ जो कुछ भी किया जानबूझकर किया । इस बात का पता मीरा के पति को चल जाता है और उन्हें घरवालों पर काफी गुस्सा आता है पर कुछ नहीं बोल पाते ,अब तो जैसे मीरा का पति के अलावा ससुराल में कोई साथ देने वाला नहीं था, और अब मीरा की मानसिक स्थिति पर कई घटनाओं का प्रभाव पढ़ चुका था अब मीरा के व्यवहार मैं कई तरह के बदलाव आ गए।                                                       लेकिन मीरा और मीरा के पति का प्यार सात समंदर से भी गहरा निकला यहां रिश्ता बचाने में मीरा की मां लक्ष्मी जी ने मदद की और फिर दोनों  पति पत्नी को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा अब दोनों का जीवन खुशहाल चल रहा लेकिन मीरा की सपने को लेकर इच्छा बंद नहीं होती मीरा मैं बचपन से ही एक कला और पाई गई थी जो थी लिखने की वैसे तो मीरा बड़े-बड़े कवियों की तरह नहीं लिख सकती ऐसा सब उसे नकारात्मक ऊर्जा की ओर अंकित करते हैं लेकिन मीरा ने ठान लिया है ,इस दुनिया से जाने से पहले वह भारत मां की संतानों के लिए कुछ ना कुछ शिक्षा देकर ही जाएगी इस सपने को पूरा करने के लिए मीरा मौत से लड़ कर वापस आई। अब मीरा को आत्मविश्वास है कि अपने सपने की उड़ान भरके ही दम लेगी।

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बहुत कुछ कहना चाहती है मीरा इसके लिए अगला title मीरा के सपने पढ़ना ना भूलें।
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मीरा बचपन से किन किन घटनाओं का समावेश कर चुकी थी सभी घटनाओं की पुष्टि मीरा उपन्यास मैं दी जाएगी जिसे आप सभी पढ़ना ना भूलें।
भारत मैं बिना बजह  30 साल की लड़ाई लड़ने दूसरी मीरा जन्म ना ले । इसी के चलते मीरा उपन्यास लिखा जा रहा है।
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जय भीम, जय हिंद, जय भारत............
जय मां लक्ष्मी.....
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सुनीता सूर्यवंशी।
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जय बालाजी सरकार जी की ।

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